Sunday, February 21, 2010

पुलिस ही तो है कोई...


काफी समय पहले कि बात है, शायद तब मैं 8 वी क्लास में पढता था। मैं अपने एक दोस्त के साथ उसकी बाइक से घूम रहा था इसी बीच हमें एक दोस्त और मिल गया। हमने उसे भी अपने साथ ले लिया और मस्ती में झूमते चले जा रहे थे। यह मस्ती ज्यादा देर तक नहीं चल पाई। एकाएक हमारे सामने एक पुलिस वाला गया। उसे सामने देखकर तीनों के पसीने छूट गए। हमें लगा मनो खुद यमराज हमारे सामने गए हों। हमारे पास गाड़ी के कागज थे और ही हेलमेट। पुलिस वाले ने तीनो से घरवालो को बुलाने के लिए कहा। तीनों डर गए कि अगर घरवालों को पता चल गया कि पुलिस ने पकड़ रखा है तो बहुत मार पड़ेगी। इसलिए हम पुलिस वाले को मानाने में जुट गए कि किसी तरह वह मान जाये लेकिन वो हमसे भी ज्यादा बच्चा हो रहा था, मान ही नहीं रहा था। हमने उससे माफ़ी मांगी और कहा कि अंकल अब कभी नहीं घूमेंगे तो शायद उसे भी हम पर दया गई। उसने हमसे कहा कि अगर हम सड़क पर कान पकड़ कर दंड बैठक लगा देंगे तो वह हमें जाने देगा। एक तरफ घरवालो कि मार थी तो दूसरी तरफ अपनी बेइज्जती का डर...अब कहीं तो कोम्प्रोमाइस करना था। चूँकि शाम का समय था और सड़क पर थी कोई दिखाई नहीं दे रहा था तो हमने दंड बैठक लगाना ज्यादा मुनासिब समझा। सजा पूरी होते ही हम वहां से खिसक लिए। शुकर है शाम का समय था इसलिए हमारी इज्जत का फालूदा होने से बच गया। इस घटना के बाद तो जहाँ भी पुलिस दिख जाती हम रास्ते को ही छोड़ देते थे।

अब हालत बदल चुके है। पुलिस जनता और बदमाशों दोनों से मलाई मार रही है। जनता से रिपोर्ट लिखने से लेकर मामले की तफ्तीश तक बार-बार रिश्वत मांगी जाती है और अगर पुलिस किसी तरह बदमाश तक पहुँच भी जाये तो उसे छोड़ने का सौदा हो जाता है। पुलिस की चारों उँगलियाँ ही नहीं वो तो पूरे के पूरे घी मैं होते हैं। पुलिस को बनाया तो जनता की सेवा के लिए गया है लेकिन अब वह जनता से ही 'सेवा' का लाभ उठा रही है। यही कारण है की अब लोग तो क्या बच्चे भी नाम सुनकर भागते नहीं हैं। कई बार तो लोग मिलकर पुलिस की धुनाई भी लगा देते है और पुलिस पिटती रहती है। रिश्वत के दलदल में फंसकर पुलिस की छवि इतनी धूमिल हो चुकी है कि बच्चे भी किसी मोहल्ले में पुलिस के आने पर वहां से भागने के बजाये उल्टे पुलिस से पूछ लेते है ...अंकल क्या हो गया है यहाँ?
घर के बुजुर्ग कहानी सुनते थे कि उनके समय में जब पुलिस सड़क से गुजरती थी तो लोग डर से घर में छुप जाते थे कि पुलिस उनसे कुछ कहे किसी समय माँ भी बच्चे को पुलिस का नाम लेकर देती थी लेकिन आज कोई बच्चा पुलिस से डरता है जवाब होगा कतई नहीं इसे इक्कीसवी सदी का बदलाव तो नहीं कहा जा सकता है। मैंने भी एक बार एक बच्चे से पूछ ही लिया घर के पुलिस से डर नहीं लगता? बच्चे ने बड़ी तत्परता से जवाब दिया कि पुलिस ही तो है... कोई होव्वा थोड़े है। तब हमें शायद इतनी समझ नहीं थी अगर होती तो पुलिस वाले को बीस का नोट देकर हम भी बच सकते थे।
(फोटो गूगल से)

2 comments:

  1. बहुत दिलचस्प .......घटना थी .....पुलिस ने अपने आप को खुद बदल डाला .....जिसका हस्र् ये हुआ ....कि पुलिस माने कुछ नहीं !

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