
यह एक ऐसा विषय है जिससे कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है मगर ये विषय आत्ममंथन और आत्मचिंतन का है। किसी समय लड़कियों को अकेले घर से बाहर निकलने पर पाबन्दी थी बाद मैं उन्हें भाई के साथ बहार जाने कि इजाज़त दे गई। समय और बदला, लडकिया अकेले घर से बहार तो जा सकती थी लेकिन शाम ढलने से पहले उन्हें घर पहुंचना जरुरी था। उस समय तक कोई बाप अपनी लड़की को पढने के लिए बाहर भेजने में संकोच करता था। वह कम से कम इस बात कि तस्दीक करता था कि गर्ल्स होस्टल है कि नहीं, वहां सुरक्षा कैसी है। सदी बदली, संस्कृति बदली, समाज और यहाँ तक कि लोगों कि सोच भी बदल गई। मैं इसे गलत नहीं कहूँगा। लड़किया कोई कैदी नहीं है कि उन्हे शादी से पहले घर और शादी के बाद ससुराल में कैद रखा जाये। उनकी भी जिंदगी है, उन्हें भी स्वतंत्र जीने का हक़ है। सवाल यह है कि कितनी स्वतंत्रता ठीक है???
नॉएडा एक हाईटेक शहर है। बड़े-बड़े मॉल, मार्केट, पब आदि ने यहाँ का कल्चर बदल दिया है। यहाँ के कॉलेज में पढने, कॉल सेंटर में काम करने के लिए जब छोटे-छोटे शहरों से लड़के और लड़कियां आते है तो पता नही उन्हें यहाँ आते ही क्या हो जाता है? कुछ दिन बीतते ही लड़के को बीयर, गुटखा, सिगरेट की लत लग जाती है तो अब तक सहमी सी रहने वाली लड़की भूल जाती है की उसने अपनी जिंदगी में कभी सलवार सूट पहना होगा। अब तो बस जींस टॉप, कैपरी, बैकलेस, ये लेस... वो लेस... शेम लेस... सब पहनती हैं। परिवर्तन ही संसार का नियम है, लेकिन परिवर्तन ऐसा?????? यहाँ तक तो सब ठीक है लेकिन हद तब हो जाती है जब ये लड़के-लड़कियां प्यार की पीगे बढ़ाते हैं। घर में भी सहमी सी रहने वाली लड़की अब लिवइन रिलेशन में रहने लगती है। उनके घरवाले यही सोचते होंगे की उनकी बेटी लड़कियों के साथ रहती होगी पर उनका विश्वास गलत साबित होता है। इसका कारन यह है कि इस अनजान शहर में उन्हें देखने वाला उनका भाई, हर समय टोकने वालो माँ, बाप, चाचा, चाची कोई नहीं होता है जिसकी शर्म से यह अब तक ये काम नहीं कर पाए थे। यहाँ तो यह आज़ाद पंछी कि तरह होते हैं, इनके सामने खुला आसमान है और साथ हैं जवानी के पर, जितनी उड़ान ये भर ले उतनी ही शायद कम है......